Yug Purush

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8TH SEMESTER ! भाग-38( Turning Point )

Chapter-12: The Turning Point... भाग -2

"चल ठीक है तू पढ़ाई कर ,bye.."bhu के रूम से बाहर जाते हुए मैने कहा पर फिर  ना जाने क्या मन मे आया कि मैं फिर से पीछे मुड़ा और bhu से बोला"ऐश की कोई न्यू न्यूज़...."


ऐश का नाम सुनते ही पहले तो bhu हिचकिचाया और मुझे अपनी आँखो से ये बताने लगा कि उसके बाय्फ्रेंड ने मुझे सबके सामने थप्पड़ मारे थे उसका नाम मत ले और फिर मैने भी उसे आँखो के इशारे से बताया कि मैने भी तो गौतम को सबके सामने थप्पड़ मारा था , तेरे लिए... इसलिए हिसाब बराबर.....

"ऐश .."दिमाग़ मे ऐश का नाम सर्च करते हुए फिर  बोला"उसके बाय्फ्रेंड गौतम के बाप को किसी ने चाकू पेला है और अपने बाप के इलाज के सिलसिले मे उसे कल शहर से बाहर  जाना पड़ा...  अब कम से कम एक हफ्ते बाद ही आएगा वो ..कल सीनियरस  के हॉस्टल  गया था तो वही कुछ लोगो ने बताया"

"थैंक यू bhu "उछल कर मैने उसे गले लगा लिया.. गले क्या.. ख़ुशी के मारे ऊपर उठा लिया,  डेढ़ फुटिया को  और फिर उसके बिस्तर पर उसे पटक कर मैं अपने ख़यालो मे गुम हो गया.....

अब कुछ दिन तक मैं और ऐश एक साथ.... एक ही कॉलेज मे और आज एक बार फिर से मुझे इंतेज़ार था कल की सुबह का...कल के टेस्ट के  जल्दी से ख़तम होने का....प्लान सिंपल था कल जब टेस्ट ख़तम होगा तो मैं पूरा कॉलेज छान मारूँगा और जहाँ भी ऐश मिलेगी वही उससे लड़ाई करके अपना मूड फ्रेश करूँगा. वो मुझपर चिल्लाएगी... चीखेगी... मुझे जान से मारने की धमकी देगी...और मैं उसे बिल्ली  कहूँगा....अरमान फिर मचल उठे ,दिल फिर खिल उठा....किस्मत फिर जाग उठी और मैं अपने रूम मे घुसते हुए ताव से बोला

"एक क्वेस्चन छोड़ दूँगा कल एग्ज़ॅम मे और जल्दी से जल्दी ऐश को ढूंढने निकलूंगा..."


उस दिन ना तो मैने ढंग से अगले दिन होने वाले एग्जाम की तैयारी की और ना ही ढंग से सोया...जब भी आँख लगती,पलके भारी होने लगती... तभी ऐश की भूरी आँखो को मैं महसूस करता ,उसकी सूरत नींद मे भी किसी साए की तरह मुझसे लिपटी रहती, मुझे ऐसा लगता जैसे की वो मेरे पास वही मेरे ही बिस्तर पर मेरे बगल मे लेटी मुझे निहार रही हो और लेफ्ट साइड मे धड़क रहे मेरे दिल को मुस्कुराते हुए सहला रही हो और फिर जब मैं उसे अपने दोनो हाथो मे समेटने के लिए अपने हाथ आगे करता तो वो अचानक ही  गायब हो जाती और मै वास्तविकता से परिचित होता की ऐश वहा नही है ....ऐश को वहाँ ना पाकर मुझे थोड़ा सैड  भी फील होता और खुद्पर हँसी भी आती....


किसी के ख़यालो मे खोए रहना , सोते जागते बस उसी के बारे मे सोचना ये सब मैने सिर्फ़ हिन्दी फ़िल्मो मे होते हुए देखा था...लेकिन उस रात उन सब लम्हो को मैने खुद महसूस किया,  उन लम्हो को मै खुद जी रहा था. मैं जब भी अपनी आँखे बंद करता और हल्की से नींद लगती तभी ना जाने कहाँ से ऐश आ जाती और हम दोनो एक दूसरे से लड़ते झगड़ते....मैने तो उसे चिढ़ाने के लिए उसका निक नेम तक सोचा लिया था "भूरी बिल्ली~ brown cat." हक़ीक़त की तरह मैं सपने मे भी उसे बिल्ली ही  कहता और हक़ीक़त की तरह सपने मे भी वो मुझे जान से मारने की धमकी देती...उसे पाने के लिए कलेजा तड़प रहा था , उसे छुने के लिए मैं बेताब हुआ जा रहा था....उस वक़्त मेरे लिए सारी दुनिया एक तरफ और ऐश एक तरफ थी....


"कल का एग्ज़ॅम पक्का खराब जाने वाला है..."आधी रात को मैं लगातार नींद के टूटने से परेशान होकर बैठ गया और आँखे मलते हुए अंधेरे मे ही नींद की आगोश मे डूबे हुए एक सिगरेट सुलगाई....

मेरी आँखो मे उसकी सूरत का कुछ ऐसा रंग चढ़ा था कि मुझे डर लगने लगा था खुद से....  कि कही मैं वो रंग निकालते -निकालते  अँधा ना हो जाउ, मै जितना अजीब था, उससे भी अजीब मैं उस वक़्त  हरकते कर रहा था... सिगरेट के कश लेते हुए मैं कभी ऐश को पाने के लिए एकदम बेचैन हो जाता तो कभी उसके बारे मे सोचकर दिल खिल उठता.... मोबाइल मे टाइम देखा रात के 2 बज रहे थे, नींद तो आने से रही इसलिए मैने बाहर टहलने का फ़ैसला किया और रूम से बाहर आ गया, अरुण आधा बिस्तर मे और आधा बिस्तर से बाहर लटका अब भी गहरी नींद मे था,  इसलिए उसे उठाकर टाइम पास  करने का मन नही किया...


सुना था कि ज़िंदगी मे कभी-कभी कोई चीज़ हमे ऐसी मिल जाती है जो ज़िंदगी से भी ज़्यादा प्यारी लगने लगती है , ज़िंदगी से भी ज़्यादा अनमोल लगने लगती है और आज मुझे वो चीज़ मिल गयी थी.... आज वो ज़िंदगी से भी प्यारे और अनमोल चीज़ एक लड़की के रूप मे मुझे मिली गयी थी. जो सीधे मेरे  लेफ्ट साइड मे होनी दस्तक दे रही थी.....मेरे दिमाग़ की  porobability और possibilities की कैलकुलेशन  मुझे हालांकी  इस बात की हिदायत दे रहा थे  कि मैं उसके बारे मे ना सोचु, मेरा दिमाग़ की कैलकुलेशन  ये भी कह रही थी कि ऐश कभी भी मुझसे दिल नही लगाएगी, उस रात मैने एग्जाम  मे आने वाले  मोस्ट इम्पोर्टेन्ट क्वेस्चन के साथ -साथ ज़िंदगी के उस मोस्ट इंपॉर्टेंट सच को भी दरकिनार कर दिया... जैसा की मैने बताया.. मै जितना अजीब था, उससे भी ज्यादा हरकते इस वक़्त कर रहा था.


उस रात काफ़ी देर तक इधर उधर टहलने के बाद मैं वापस अपने बिस्तर पर जा गिरा और सुबह के 5 बजे जाकर मेरी आँख लगी जो सीधे टेस्ट के आधे घंटे पहले खुली, वो भी अरुण के उठाने के कारण... वरना मै शत प्रतिशत अप्सेंट रहता आज...

"क्या है बे, आज टेस्ट देने नही जाना क्या..."अरुण ने मुझसे पुछा, वो बिल्कुल तैयार था और अब शायद एक बार रिवीज़न मारने के जुगाड़ मे था.....

कल का उसका टेस्ट ख़राब गया था, इसलिए वो सारी कसर आज के टेस्ट मे निकाल देना चाहता था. जो की एक नार्मल स्टूडेंट की नार्मल सी पहचान है... लेकिन मै नार्मल नही था.

"टाइम....?"आँखो को मलते हुए मैं बोला"टाइम क्या हुआ है"

"ज़्यादा नही.. बस  दोपहर के 12:30 बज रहे है और आधे घंटे मे एग्ज़ॅम शुरू होने वाला है.... साले दोपहर है गया और टाइम पूछ रहा है "

"इंजीनियर्स की सुबह नही... सीधे दोपहर होती है...😎"

"फिर यदि नींद पूरी ना हुई हो तो 5-10 मिनट. की एक छोटी सी झपकी  और ले ले..."

"ठीक है फिर... 5 मिनट. बाद उठा देना..."बोलकर मैने फिर चादर तान ली....
.


उस दिन के एग्ज़ॅम मे मुझे सिर्फ़ इतना मालूम था कि टेस्ट किस सब्जेक्ट का है, दिन एवं दिनांक  भी मैने आगे वाले से पुछ कर भरा था. साला,  मुझ जैसे ब्रिलियेंट लड़के से पेपर का एक क्वेस्चन तक  नही बन रहा था. दिल किया कि खाली कॉपी सामने खड़े Invigilator के मुँह  पर मारकर बाहर निकल जाऊं...., लेकिन फिर रिज़ल्ट मे एक बड़े से ज़ीरो का ख़याल आया तो हर क्वेस्चन के आन्सर मे कुछ कुछ लिखकर फाइनली मै बाहर निकला....जिस हिसाब से मैने आज का टेस्ट दिया था उसके अनुसार तो मुझे बहुत दुखी होना चाहिए था और अरुण को ढेर सारी गाली देकर अपना मन शांत करना चाहिए थी....

लेकिन इसके बावजूद ना तो मैं दुखी था और ना ही मेरा गाली देने का मन था... मैं खुशी ख़ुशी, बड़े प्यार से Invigilator  को कॉपी सब्मिट करके बाहर आया.... साला Invigilator भी हैरान था की मै इतना खुश क्यों हूँ.. जबकि मेरा पेपर इतना ख़राब गया है... पर वो तुच्छ लोग क्या जाने मेरी महानता को... वैसे भी महान लोग ऐसे ही होते है, वो कभी निराश नही होते...


पहले मैं लाइब्ररी मे घुसा लेकिन आज वहाँ ऐश नही थी, उसके बाद मैने उपर ,नीचे सभी कॉरिडर मे उसे  ढूँढा... लेकिन ऐश फिर भी मुझे नही दिखी....तब जाकर मुझे ध्यान मे आया कि टेस्ट तो उसका भी है , अभी एग्ज़ॅमिनेशन रूम मे ही होगी तो क्यूँ ना जहाँ उसकी कार खड़ी रहती है वहाँ से थोड़ी दूर खड़े रहकर इंतेज़ार किया जाए.....लगभग आधे घंटे मैं कॉलेज पार्किंग के पास खड़ा रहा लेकिन वहाँ पार्किंग मे ना तो उसकी कार थी और ना ही ऐश ...लेकिन मैं फिर भी वाहा खड़ा रहा क्यूंकी मुझे यकीन था की कोई भी इतनी जल्दी एग्जाम  हॉल से नही निकल सकता... श्री अरमान के पहले तो बिलकुल भी नही... स्वयं नारायण के लिए ये नामुमकिन है, फिर इन इनाश्नों की क्या बिसात....


लगभग आधे घंटे तक मैं वहाँ पार्किंग मे खड़े होकर मक्खिया मारता रहा तब जाकर ऐश मुझे  दिखाई दी, वो अपने कुछ दोस्तो के साथ हस्ती हुई कॉलेज के ममेन गेट से बाहर आ रही थी और मेन गेट से लेफ्ट  टर्न मारकर अपने दोस्तो के साथ कैंटीन  की तरफ चल दी......

"एक नंबर की भूक्कड़ है ये तो , मैं इतनी देर से उसके इंतेज़ार मे यहाँ खड़ा हूँ और वो कैंटीन  की तरफ चल दी.... सच्चे आशिक की क़द्र ही नही है किसी को "

मैने भी कैंटीन  की तरफ टर्न मारा, लेकिन कैंटीन  मे घुसने से पहले मैने सिदार को कॉल किया और बोला कि मैं कैंटीन  मे जा रहा हूँ, नज़र मारते रहना...... की कही कोई सिटी वाला सीनियर मौका देख के पेल ना दे.... गौतम के साथ हुई लास्ट word war ने मुझे इटंस तो सीखा ही दिया था.

मैं कैंटीन  मे जहाँ ऐश बैठी थी उसी के पास वाली टेबल एक टेबल  पर बैठा...कुछ देर तक तो उसके दोस्त वही रहे लेकिन फिर सब अपने -अपने घर को निकल गये...ऐश को उसके कई  दोस्तो ने कहा कि वो उनके साथ चले वो उन्हे घर ड्रॉप कर देंगे...लेकिन ऐश ने हर किसी को टाल दिया ,वो बोली कि उसके डैड ने ड्राइवर से कार भेजवा दी है...वो जल्द ही यहाँ पहुच जाएगा.....


"दो पेप्सी लाना "मैने ऑर्डर दिया और जब दोनों पेप्सी मेरे सामने आ गई तो उन्हें उठाकर जहाँ ऐश बैठी थी वहाँ जाकर उसी की बाजू वाली चेयर पर मै बैठ गया

"तुममममम ...."मुझे देखते ही पहले तो वी चौकी, फिर अपनी भूरी -भूरी आँखे छोटी करके मुझे घूरने लगी और हल्का सा उसके तेवर बदले

"हाँ, मै.... कहिए मैम  ,क्या सेवा कर सकता हूँ, आपकी "

"ये सीट booked  है ,तुम जाओ यहाँ से..."

"Booked...? ये कैंटीन है, सिनेमा हॉल नही की... सीट booked है.. चल खिसक उधर......?"

"तुम्हे याद है ना... वो खंज़र और तुम्हारा सीना, जिसे लेकर मैने कल तुम्हे वार्निंग दी थी .."

"चल भूरी बिल्ली , तेरे मे इतनी हिम्मत कहाँ...."

"इस कैंटीन  का मालिक  कौन है..?."ऐश चिल्लायी, जिसे सुनकर तुरंत ही वहाँ काम करने वाला एक आदमी पहुच गया....जिसे देखकर ऐश बोली

"इसे यहाँ से ले जाओ, ये मुझे परेशान कर रहा है..."

कैंटीन  वाला कुछ बोलता उससे पहले ही मैने हाथ दिखाकर उसे वहाँ से जाने की धमकी दी.. जिसके कारण  कभी ऐश उसे आँख दिखाती तो कभी मैं....जिससे बेचारा तंग आकर बोला

"आप दोनो खुद संभाल लो, मुझे बहुत काम है..."


कैंटीन  मे काम करने वाले उस शक्स के जाने के बाद ऐश कुछ देर तक चुप चाप कुछ खाती रही और फिर जब उसका खाना पीना जब ख़तम हुआ तो वो अपना हाथ झाड़ कर मेरी तरफ झुकी और धीरे से बोली....

"यहाँ गौतम के कई सारे दोस्त है , गौतम आकर विवाद करेगा..."

"तुम उसकी फिकर मत करो..."मैं भी धीरे से उसकी तरफ झुक कर बोला

"तो जाओ यहाँ से..."वो फिर से अचानक चिल्लाकर बोली...जिससे सबकी नज़र हम दोनो पर आ टिकी...

"तू सटक गई है क्या, पूरा कान फाड़ दिया मेरा... चिल्ला -चिल्ला कर... और ये तू गाँव वाली हरकते मत किया कर, वरना तुझे अपने आस-पास भी नही रहने दूँगा..."

"मैं तुम्हारे पास घूमती हूँ क्या, तुम ही मेरे पीछे पड़े हो.... पता नही क्यों "

"क्यूंकि... आईईईईईई......"मैं एक बार फिर आइ वर्ड से आगे नही बढ़ पाया और उसकी तरफ पेप्सी का एक बोतल सरकाते हुए बोला"लो पियो और मेरा बिल  भी पे कर देना...."

"क्याययाया ..."

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7 Comments

Kaushalya Rani

26-Nov-2021 06:36 PM

Nice part

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Barsha🖤👑

26-Nov-2021 05:39 PM

बहुत अच्छा भाग

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Harsh jain

02-Sep-2021 03:53 PM

💐💐💐

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